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koye badlenge harijan sur manva teri aadat n

kabir

Kabir ke Shabd

कोय बदलेंगे हरिजन सूर, मनवा तेरी आदत नै।।
चोर ज्वारी क्या बदलेंगे, माया के मजदूर।
भांग तमाखू अमल धतूरा, रहे नशे में चूर।।
पाँच विषयों में लटपट हो रहे, सदा मति के क्रूर।
उनको तो सुख सपने नाही, रह साहब से दूर।।
पांचों ठगनी मिल के लूटें, माहे तृष्णा हूर।
बे अक़्ली में हैं लूटेंगे, मचा रही फस्तूर।।
उत्तम कर्म हरि की भक्ति, सत्संग करो जरूर।
जन्म जन्म के पाप कटेंगे, हो जांगे माफ कसूर।।
सुरति स्मृति वेद की नीति,गुरू मिले भरपूर।
सन्त जोतराम समझ का मेला, सच्चिदानन्द नूर।।
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