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sadguru sarna aaye ram gun gaye re

kabir

Kabir ke Shabd

सद्गुरु शरणां आए, राम गुण गाए रे।
तेरो अवसर बीतो जाए, फेर पछताए रे।।
झूला तूँ नर्क द्वार, मांस ना बीच ते।
तूने किया था कौल करार, विसर गया मीत रे।।
लागा तेरै लोभ अपार, माया के मद थका।
बन्ध गया रे बन्ध अपार, नाम नाही तूँ ले सका।।
माया वन अंधा,मृग जल डूब रे।
तूँ तो भरमत फिरै रे गंवार, माया के रूप रे।।
मोह को करके मैल, श्वान ज्यूँ भोंक मरा।
तूँ यो शुद्ध स्वरूप विसार, चौरासी लख फिरा।।
ये जग है मूढ़ अज्ञान, कार शुद्ध ना करे।
भाना नाथ बिना नाम, कारज कैसे सरे।।
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