Kabir ke Shabd
इस बुढ़िया के आए लनिहार, जान तैं नाटै सै।।
हाथ जोड़ के बोली बुढ़िया, बात मानलो मेरी।
सारी उम्र गई धंधे में, ना हरि की माला फेरी।
हे वा तो रोवै थी सिर मार, कौन दिल डांटे सै।।
जोड़-२ कै धरदीआया, ना कदे खाई खेली।
नहीं सुने कदे कथा कीर्तन, ना सत्संग में आई।
हे न्यू ए उम्र गई बेकार,न्यू के बेरा पाटै सै।।
बेटे जन दिए चार मनै, बहुआं का लारा लागै।
मेरे बिना रो रो के मर जा, यो पोता प्यारा लागै।।
शोभाचन्द की सेवा करकै, हरि के गुण मैं गाउँ।
धुनिनाथ मिलै सत्संग में, सत्संग सुन कै आऊँ।
उसने मिला गुरू का ज्ञान नए छंद छांटे सै।।