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यो सँसार पाप का बंधन, तोड़ लिए जो तोड़ सकै तै

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Kabir ke Shabd

यो सँसार पाप का बंधन, तोड़ लिए जो तोड़ सकै तै।
उस ईश्वर से नाता बन्दे, जोड़ लिए जो जोड़ सकै तै।।
पाप मूल अभिमान बतावै, दया धर्म का मूल मिलै।
अक्षर-२ लिख राखे,ना उसके घर में भूल मिले।
लख चोरासी में लिख राखी, सुक्ष्म और स्थूल मिले।
तूँ किसका मां गुमान करै सै, अंत धूल में धूल मिले।
आशा तृष्णा तैं बन्दे मूँह,
मोड़ लिए जो जोड़ सकै तै।।
दसों ठगनी तेरे शरीर की, चित्त बुद्धि ने भंग करें।
नित नए खेल खिलावन खातिर, मन मुर्ख तनै तंग करैं।
काम क्रोध मद लोभ मोह में, धर्म की गैल्ल्यां जंग करैं।
विषय रूप अहंकार के फंदे, तेरे फांसन का ढंग करैं।
ये अन्धकूप में जा पटकें,
दौड़ लिए जो दौड़ सकै तै।।
चेती जा तै चेत बावले, फेर के बाकी रह जागा।
धन का होजा रेत बावले, फेर के बाकी रह जागा
कर ईश्वर से हेत बावले, फेर के बाकी रह जागा
जब चिड़ियां चुग जां खेत बावले, फेर के बाकी रह जागा
दसवां द्वार ब्रह्म का रास्ता
फोड़ लिए जो फोड़ सकै तै।।
एक ने मार पाँच मर जावै, बात बढ़न की ना सै रै।
अक्षर पढले एक ॐ का,घने पढ़न की ना सै रै।
जो सत्संग सेल लागजा तन में, ओर गड़न की ना सै रै।
काट की हांडी चढै एक बै, फेर चढ़न की ना सै रै।
कह कृष्ण लाल ज्ञान का चमचा,
रोड़ लिए जो रोड़ सकै तै।।
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