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कोकिला व्रत – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

कोकिला व्रत 

कोकिला ब्रत आषाढ़ मास की पूर्णिमा को किया जाता है। यह ब्रत दक्षिण भारत में अधिक रखा जाता है। इस ब्रत को करने वाली स्त्रियाँ सूयोदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद सुगन्धित इत्र का प्रयोग करती हैं। यह नियम से आठ दिन तक चलता हैं। प्रातः:काल भगवान भास्कर की पूजा करने का विधान है।
कोकिला व्रत की कथा
प्रजापति दक्ष ने एक बार बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में सब देवताओं को आमंत्रण दिया गया परन्तु अपने दामाद भगवान शंकर को उन्होंने आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने पति भगवान शंकर से मायके जाने का इच्छा जताई, लेकिन शंकर जी ने बिना निमंत्रण के उनके मायके जाने के लिये मना कर दिया। परन्तु जिद करके सती अकेले ही मायके चली गई। मायके में जाकर सती का घोर अपमान और अनादर हुआ। इस कारण सती प्रजापति के यज्ञ-कुण्ड में कूदकर भस्म हो गई। भगवान शंकर को जब सती के भस्म होने का समाचार मिला तो वे क्रोध में आ गये। उन्होंने वीरभद्र को प्रजापति दक्ष के यज्ञ को खंडित करने का काम सोंपा। इस बात को शांत करने के लिये भगवान विष्णु शंकर जी के पास गये तथा उनका क्रोध शांत करने का प्रयास किया। भगवान आशुतोष का क्रोध शांत हुआ परन्तु आज्ञा का उल्लंघन करने वाली अपनी पत्नी सती को भगवान शिव ने श्राप दिया कि जाओ! दस हजार वर्ष तक कोकिला पक्षी बनकर घूमो। सती कोकिला के रूप में ननन्‍्दनवन में दस हजार वर्ष तक रहीं। इसके बाद पार्वती का जन्म पाकर, आषाढ़ मास में पार्वती ने नियमित रूप से एक मास तक यह ब्रत किया जिसका परिणाम यह हुआ कि भगवान शिव उनको उनको दुबारा पतिरूप में प्राप्त हुए।
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