बिन्दायक जी की कहानी
एक मेंढक और एक मेंढकी थे। मेंढकी रोज बिन्दायकजी की कहानी कहती थी। एक दिन मेंढक बोला कि तू पराये पुरुष का नाम क्यों लेती है? अगर तू अब दुबारा नाम लेगी तो में तेरा सिर तोड़ दूंगा।
राजा की दासी आई तो उसने मेंढक-मेंढकी को पतीले में डालकर अँगीठी पर चढ़ा दिया। तब दोनों सिकने लगे तो मेंढक मेंढकी से बोला-‘“यदि तुझे कष्ट हो रहा है तो तू अपने बिन्दायक जी को याद कर, नहीं तो हम दोनों मर जायेंगे। तब मेंढकी ने सात बार बिन्दायकजी-बिन्दायकजी कहा तब दो साँड लड़ते हुए आये और पतीले को गिरा दिया।
मेंढक-मेंढकी बहते हुए तालाब में चले गये। हे गणपति महाराज! जेसे मेंढक और मेंढक का संकट काटा, उसी प्रकार सभी के संकट काटना। कहने वाले और सुनने वाले के कष्ट दूर करना। हमारे और हमारे परिवार के सभी कष्ट दूर करना।