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नितनेम की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

नितनेम की कथा 

एक गांव में माँ और उसकी दो बेटियां रहती थीं। वह रोजाना नितनेम की कहानी कहा करती थीं। उसकी बेटी ने कहा-”माँ में नितनेम की कहानी कहूँगी।” माँ ने कहा -‘बेटी तेरी कहानी ससुराल में कौन सुनेगा!” उसने जिंद की ओर नितनेम की कहानी कहने लगी। उसकी शादी हुई, ससुराल गई, तो वहां पर सबसे कहती फिरती कि मेरी कहानी सुन लो सभी कुछ-न-कुछ बहाना बनाकर टाल देते। कोई कहानी नहीं सुनता था, तो वे भूखी ही रहती थी। एक दिन पड़ोसन बोली कि में तेरी कहानी सुनूंगी। वह आती, कहानी सुनती तो बहू खा लेती थी।
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एक दिन ननद ने अपनी माँ से कहा कि माँ भाभी पड़ोसन के कहने पर तो खाना खा लेती है और यदि हम खाने को कहते हैं तो नहीं खाती। माँ ने कहा उसे मना कर देना। उसने कहा-ठीक हे। लड़की ने पड़ोसन से मना किया तो पड़ोसन ने अपने पति से कहा कि उसकी बेटी मना करती है। पति ने कहा कि उसकी माँ मना करे तो मत जाना। अगले दिन सास के मना करने पर पड़ोसन नहीं आयी। बहू की कहानी कोई नहीं सुनता तो वह भूखी प्यासी रहती। ससुर ने पूछा कि बहू कैसी है? इस पर सास ने कहा कि ठीक है! सारा काम तो कर लेती है लेकिन खाती नहीं! ससुर ने कहा कि बडे घर की बेटी हे, काम करने से थक जाती होगी। इससे काम मत कराया करो, लेकिन वह फिर भी नहीं खाती, धर्मराज का आसन डोल उठा कि इस नगरी में ऐसा कौन है जो भोजन नहीं करता, उसे बुलाआ। स्वर्ग से विमान आया तो सास बोली-मैं चलूँ तो बहू ने हा-” तुम्हें तो बहुत काम था, मेरी कहानी सुनने का समय नहीं था।” जिठानी ने कहा, तो कहने लगी कि तुम्हे तो मालिक का खाना बनाना है। 
ननद ने कहा, तो कहने लगी कि तुम्हें तो अपने खिलोनों से खेलने से फुर्सत ही नहीं थी। पड़ोसन बोली कि में चलूँ, तो वह बोली कि हाँ चलो, तुमने ही मेरी नितनेम की कहानी मन से सुनी हे। वह अपने मालिक के पास गई। मालिक बोला कि तू तो बड़ी भाग्यवान है जो जीते जी जा रही है, मरकर तो सभी जाते हैं। वह भी चली गई। जैसे उसे मोक्ष मिला वैसे सभी को मिले।
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