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बिन्दायक जी की कहानी – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

बिन्दायक जी की कहानी 

एक छोटा सा लड़का अपने घर से लड़कर निकल गया और बोला कि आज तो में बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊंगा। तब लड़का चलते -चलते उजाड में चला गया तो बिन्दायक जी ने सोचा कि मेरे नाम से ही इसने घर छोड़ा हे इसलिए इसे घर भेजें, नहीं तो जंगल में शेर वगैरा खा जायेगें। फिर बिन्दायक जीं बडे ब्राह्मण का भेष धरकर आये और बाले कि तू कहा से आ रहा हे और कहा जा रहा हे? तब वह बोला कि में बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूं। तब वह बोले कि में बिन्दायकजी हूं, मांग तू क्‍या मांगता है! परन्तु एक बार ही मांगियों। वह लड़का बोला कि क्या मांगू, बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल भात मुट॒ठी परासें, ढोकता मुटठी भर कर डोल, स्त्री ऐसी हो जैसे फूल गुलाब का। तो बिन्दायक जी बोले कि लड़के तूने सब कुछ मांग लिया। जा, तेरा ऐसा हो जाएगा। 
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फिर वह लड़का घर आया तो देखा एक छोटी बीनणी चोकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया तब वह लड़का अपनी मां से बोला कि देख मां, में कितना धन लाया हूं। बिन्दायक जी से मांगकर लाया हूं। हे बिन्दायक जी महाराज! जेसा उस लड़के को धन दिया वैसा सबको देना। कहते सुनते अपने परिवार को धन देना। 
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