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स्वेच्छाचारी न बनो – संतुलित जीवन का महत्त्व – importance of balanced life

स्वेच्छाचारी न बनो

Importance of balanced life – प्राचीन काल में एक पवित्र विचार वाला साधु था। वह कहा करता था कि संसार में स्वेच्छाचारी व्यक्तियों को ही दुःखों का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति इच्छा पर काबू रखता है, वह हमेशा सुखी रहता है। एक बार साधु को खीर खाने की इच्छा हुईं। वह एक सदगृहस्थ से बोला – आज मुझे खीर खाने की इच्छा हो रही है।
don't be arbitrary
 

गृहस्थ ने कहा – बहुत अच्छा बन जायेगी। थोड़ी देर बाद साधु बोला – अब खीर नहीं खानी है। गृहस्थ ने पूछा – क्या बात है? साधु बोला – इच्छा हुई है, वह में खाऊँगा। गृहस्थ ने पूछा – ऐसा करने का क्‍या कारण है? साधु ने उत्तर दिया – इच्छा की आधीनता जीवात्मा की अधोगति का स्थान माना जाता है।

इच्छा के आधीन न होना ही बड़ी तपस्या है। शुभेच्छा और दुरिच्छा का विवेक रहना आवश्यक है। यह सुनकर गृहस्थ भी इच्छा पर काबू रखने लगा और आध्यात्मिक उन्नति करता गया।
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