Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
पंथीडा पंथ बाँका रे, हो पंथीडा।।
पंथ बाँका मुक्ति नाका, अजर झांका रे।
कौन कामधेनु धाम है रे, जिनै सत्त नाम चाखा रे।।
महल बारीक एक द्वार है, जहां श्रवण थाका रे।
जुगन-२ के हंस बिछुड़गे, धनी मिला ना क्या रे।।
जुगन-२ के हंस बिछुड़गे, धनी मिला ना क्या रे।।
कोटि भान उजियारा है, जहां जगमगाटा रे।
भय मिटा निर्भय हुआ, मिटा जम का सांसा रे।।
भय मिटा निर्भय हुआ, मिटा जम का सांसा रे।।
प्रेम आगे नेम कैसा, सभी थाका रे।
कह कबीर शरीर झूठा, शब्द साँचा रे।।
कह कबीर शरीर झूठा, शब्द साँचा रे।।