गजल ध्वनि-पीलु । ४६
जगत जिसका, ये बनाया हुआ है।
वही सब घटों में समाया हुआ है।
नहीं दूसरा कोई है उनसे न्यारा ।
वो अपने में आपी भुलाया हुआ है।
हर एक शै जो होगी, वो रंगी बरंगी।
ये जलवा उसका दिखाया हुआ है।
उसी की अक्ल में ये आती है याद
शरण सदगुरु की ओ आया हुआ है।
हे ताकत उसी में मुंह खोलने की।
जो कुछ भेद सन्तों से पाया हुआ है।
धरम अपनी उसी की फिकर में।
करोड़ों की दौलत, जुटाया हुआ है।
जगत जिसका, ये बनाया हुआ है।
वही सब घटों में समाया हुआ है।
नहीं दूसरा कोई है उनसे न्यारा ।
वो अपने में आपी भुलाया हुआ है।
हर एक शै जो होगी, वो रंगी बरंगी।
ये जलवा उसका दिखाया हुआ है।
उसी की अक्ल में ये आती है याद
शरण सदगुरु की ओ आया हुआ है।
हे ताकत उसी में मुंह खोलने की।
जो कुछ भेद सन्तों से पाया हुआ है।
धरम अपनी उसी की फिकर में।
करोड़ों की दौलत, जुटाया हुआ है।