Search

कबीर भजन १६२

कबीर भजन १६२

भज मन जीवन नाम सवेरा। टेक
सुन्दर देह देख लिन भूखी,
झपट लेत जस वाज़ बटेरा।
या नगरी में रहन न पेहों,
रनि जाए यहां दुख घनेरा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
मनुष जनम न पैहों पेरा।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply