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कबीर भजन राग बागेश्नरी १३६

कबीर भजन राग बागेश्नरी १३६
भजन कर बोली जगत धरी टेक
भुई में गिरी हवा जब लागी माया अमल करो
पियत क्षीर मुस्काति मनहीं,
मन किलकतु कठिन करी।
खेलत खेल गलिन में झूमे चर्चा और सिरी,
ज्वान भए वरुणी संग सोते अब कह क्या संवरो,
दक्षिण दिशा छियासी योजन यम राजा नगरी,
जो मन चलत शल बहु लागै बेत ले बात करी
भोजन आगे पार बरनणी, उत्तर जब जैहो,
चित्रगुप्त तब बेमा मांगे जाए कहां वहां करी,
कहे कबीर सुनो भाई साधो सतगुरु पार करो।
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