Home Uncategorized कबीर राग पीलू दिलचन्दा १३१

कबीर राग पीलू दिलचन्दा १३१

6 second read
0
0
11
कबीर राग पीलू दिलचन्दा १३१
सन्तो ! सो सत मोहिं भावै,
जी आबगमन मिटावै। टेक
डोलत डिग वे बोलत बिसरे,
उस उपदेश सुनावे। 
बिन श्रमहठ किरिया से न्यारी,
सहज समाधि लगावे। 
द्वार निरोध वचन नहिं रोके,
नहिं अनहद उनभावै। 
कर्म करे सच्चा रहे अकर्मी,
ऐसे युक्ति बतावै। 
सदा आनन्द फन्द से न्यारा,
भोग में योग सिखावै। 
तजि धरती आकाश अधर में,
प्रेम मड़ैया छार्व। 
ज्ञान शिवरी की मुक्ति शिला पर,
आसन अचल जगावै। 
अन्दर बाहर एकहि देखे,
दूजा भाव मिटावै। 
कहै कबीर सोई गुरु पूरा,
घट विच अलख जगावै। 
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • Kabir Bhajan – raag jhanjhoti-shabd-2

    राग झंझोटी : २बाल्मीकि तुलसी से कहि गये,एक दिन कलियुग आयेगा । टेकब्राह्मण होके वेद न जाने,…
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बुद्ध को हम समग्रता में नहीं समझ सके – We could not understand Buddha in totality

बुद्ध को हम समग्रता में नहीं समझ सके – We could not understand Buddha in totality Un…