Home Uncategorized कबीर भजन १६१

कबीर भजन १६१

1 second read
0
0
14
कबीर भजन १६१
दिवाने बन्दे को तेरा साथी। टेक
जैसे बूंद ओस के मोती ऐसे काया जाती,
तन में मनवां न्यारे हुए हैं,
काया जैसे, माटी। 
खाय ले पीय ले दे ले ले ले,
यही बात है आदी। 
दिना चार साहब का भज ले,
कहा बांधेगी कहा.
भाई बन्धु सव कुटुम्ब कबीला,
और क्या बेटा क्या नाती।
यह तुम्हारे कोई काम आए,
चित को हे हैं रोटी।
चार जने मिलि लैक चलिहैं,
ऊपर चादर तानौ ।
कहत कहत कबीर सुनो भाई सन्तों,
सतगुरु कहिगु बानी।
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • Kabir Bhajan – raag jhanjhoti-shabd-2

    राग झंझोटी : २बाल्मीकि तुलसी से कहि गये,एक दिन कलियुग आयेगा । टेकब्राह्मण होके वेद न जाने,…
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बुद्ध को हम समग्रता में नहीं समझ सके – We could not understand Buddha in totality

बुद्ध को हम समग्रता में नहीं समझ सके – We could not understand Buddha in totality Un…