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कबीर भजन १५७

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कबीर भजन १५७ 
यह जग अन्धा मैं केहि समझाओं। टेक
इक दुइ हो उन्हें समझाओ,

सबहिं भुलाने पेट का धंधा।
पानी के घोड़ा पवन अस्वगवा,

ढरक पड़े जैसे ओस के मुन्दा
गहरी नदिया अगम बहे घरवा
खेवनहार पड़ि गया फांदा।
घर की वस्तु नजर न आवत,
दिवला वारि के देखत अन्धा
लागो आग सकल वन जरिगे,
बिना गुरु ज्ञान भटक गया बंदा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
एक दिन जाय लंगोटी यार बंदा।
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