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कबीर भजन १५६

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कबीर भजन १५६

मेरी सैयां निकरि गयो नैना लड़ी। टेक
ना मैं बोली ना मैं चाली,
ओढ़ चुनरिया अकेली परी ।
शीश महल के दस दरवाजे,
कौन सी खिड़की खुली रह गई।
हमारे संग की सात सहेली ना,
मैं जाना न कुछ उसने कही।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
ऐसी ब्याही से क्वारी भली ।
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