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कबीर भजन मन समझावन-१२२

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कबीर भजन मन समझावन-१२२
मानत नहीं मन मोरा साधो ।

मानत नहीं मन मोरा रे।
बार बार में यह समझाऊ,
जग जीवन है थोरा रे ।
या देही का गर्व, न कीजै,
क्यकोटि सुगन्धित चमोरा रे।
बिना भक्ति तन काम ना आवे,
क्या हाथी क्या घोड़ा रे ।
जोरि २ बहुत बटोरा,
लाखों कोटि करोरा- रे!
दुनिया दुर्गति ओ चतुराई,
जनम गयो मर तोरा रे।
कबहु आन मिलो सतसंग,
सतगुरु मान तिहोरा रे ।
लेत उठाय परम भूमि गिर-२

ज्यो बालक बिन पीरा रे।

कहै कबीर चरण चित राखो,
ज्यों सूई में डोरा रे ।
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