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एकान्त कहीं नहीं – No alone anywhere

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Budha2
एकान्त कहीं नहीं – No alone anywhere
दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित संत स्वामी वादिराज जी के अनेकों शिष्य थे किंतु स्वामी जी अपने अन्त्यज शिष्य कनकदास पर अधिक स्नेह रखते थे। उच्चवर्ण के शिष्यों को यह बात खटकती थी।
कनकदास सच्चा भक्त है यह गुरुदेव की बात शिष्यों के हृदय में बैठती नहीं थी। स्वामी वादिराज जी ने एक दिन अपने सभी शिष्यों को एक-एक केला देकर कहा – आज एकादशी है। लोगों के सामने फल खाने से भी आदर्शक प्रति समाज में अश्रद्धा बढ़ती है।
Budha2
इसलिये जहाँ कोई न  देखे स्थान में जाकर इसे खा लो। थोड़ी देर में सब शिष्य केले खाकर गुरु के सामने आ गये।केवल कनकदास के हाथ में केला जो-का-त्यों रखा था। गुरु ने पूछा – क्यों कनकदास! तुम्हें कहीं एकान्त नहीं मिला? कनकदास ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया-भगवम्। वासुदेव प्रभु तो सर्वत्र हैं, फिर एकान्त कहीं कैसे मिलेगा,
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