Home Hindu Fastivals गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्‍यों? – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्‍यों? – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्‍यों? 

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार गायत्री मंत्र के प्रथम अक्षर में सफलता, दूसरे में पुरुषार्थ, त्तीसरे में पालन, चोथे में कल्याण, पांचवें में योग, छठे में प्रेम, सातवें में लक्ष्मी,
आठवें में तेजस्विता, नवें में सुरक्षा, दसवें में बुद्धि, ग्यारहवें में दमन, बारहवें में निष्ठा, तेरहवें में धारणा, चौदहवें में प्राण, पंद्रहवें में संयम, सोलहवें में तप, सत्रहवें में दरदर्शिता, अठारहवें में जागरण, उननीसवें में सृष्टि-ज्ञान, बीसवें में सफलता, इक्कीसवें में साहस, बाइसवें में दमन, तेइसवें में विजेक और चोबीसवें में सेवाभाव नाम की शक्तियों का समावेश है। गायत्री मंत्र का कार्य दुर्बद्ध का निवारण कर सद्बुद्धि देना है। इस मंत्र के जपने से चुम्बक तत्व सक्रिय होकर प्रसुप्त क्षेत्रों को गतिशील कर देते हैं।
हर नास्ति गंगा सम॑ तीर्थ न देव: केशवात्पर:।
गायत्र्यास्तु पर॑ जाप्यं भूत न भविष्यति॥
अर्थात-गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव के समान कोई देव नहीं है। हा से श्रेष्ठ न कोई जप हुआ न होगा। गायत्री मंत्र प्रणण (ओंकार) का विस्तृत रूप है।
इस मंत्रोच्चारण द्वारा ब्रह्म के तेज की प्राप्ति होती है, इसलिए जहां भी गायत्री का वास होता है वहां यश. कीर्ति, ज्ञान तथा दिव्य बुद्धि सहज ही उपलब्ध हो जाती है।
गीता में भगवान्‌ कृष्ण ने स्वयं कहा है
“गायत्री छन्‍्दसामाहम्‌।
अर्थात्‌ मंत्रों में में गायत्री मंत्र हूं।
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में, 24 ऋषियों ओर 24 देवताओं की शक्तियां समाहित मानी गई हैं। अत: मंत्रोच्चार से उन देवों से संबंधित शरीरस्थ नाडियों में प्राणशशक्ति का स्पंदन शुरू हो जाता है। तथा संपूर्ण शरीर में आक्सीजन का हा बढ़ जाता है। जिससे शरीर के समस्त विकार जल कर नष्ट हो जाते
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शास्त्रों में कहा गया है कि गायत्रीमंत्र का श्रद्धा से विधानानुसार जप करने से शारीरिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जीवन में नई स्फूर्ति और आशाओं का संचार होता है। सदृविचार व सद्धर्म का उदय होता है। विवेकशीलता, आत्मबल, नग्रता, संयम, प्रेम, शांति, संतोष आदि सद्‌गुणों की वृद्धि होती है और दुर्भाव दुख आदि नष्ट होते हैं। इसके अलावा आयु, संतान, विद्या, कीर्ति, धन ओर ब्रह्मातेज की वृद्धि होकर आत्मा शुद्ध हो जाती हे। यह अकालमृत्यु और सभी प्रकार के क्लेशों को नष्ट करता है।
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