Home Hindu Fastivals चन्द्र छठ की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

चन्द्र छठ की कथा – हिन्दुओ के व्रत और त्योहार

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चन्द्र छठ की कथा 

किसी नगर में एक सेठ-सेठानी रहा करते थे। सेठानी मासिक धर्म के समग्य भी बर्तनों को स्पर्श करती थी। कुछ समय के बाद सेठ ओर सेठानी की मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद सेठ को बैल ओर सेडटानी को) कुतिया की योनि प्राप्त हुई। दोनों अपने पुत्र के घर में रखवाली करते थे।
पिता का श्राद्ध था। पत्नी ने खीर बनाई। वह किसी काम से बाहर गई तो एक चील खीर के बर्तन में सांप डाल गई। बहू को इस बात का पता नही चला। पर कुतिया यह सब देख रही थी। उसे पता था कि खीर में चील सांप गिरा गई हे।
कुतिया ने सोचा कि इस खोीर को ब्राह्मण खायेंगे तो मर जायेंगे। यही सोचकर कुतिया ने खीर के पतीले में मुंह डाल दिया। गुस्से में आकर बहु ने कुतिया को जलती लकड़ी से बहुत मारा जिसके कारण उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। बहू ने वह खीर फेंक दी और दूसरी खीर बनाई।
सभी ब्राह्मण भोजन से तृप्त होकर चले गये। लेकिन बहू ने कुतिया को जूठन तक नहीं दी। रात होने पर कुतिया और बैल बातें करने लगे। कुतिया बोली–*’ आज तो तुम्हारा श्राद्ध था। तुम्हें तो खूब पकवान खाने को मिले होंगे। लेकिन मसुझे आज कुछ भी खाने को नहीं मिला उल्टा बहुत पिटाई हुई है। उसने खीर ओर साँप वाली बात बैल को जता दी। बैल बोला–“’आज तो मैं भी भूखा हूँ। कुछ भी खाने को नही मिला। आज तो ओऔर दिनों से भी ज्यादा काम करना पड़ा। बेटा और बहू बेल ओर कुतिया की सारी बातें सुन रहे थे। बेटे ने पंडितों को बुलाकर पूछा अपने माता-पिता की योनि के बारे में जानकारी ली कि जे किस योनि में गये हैं। पंडितों ने बताया कि माता कुतिया योनि में और पिता बैल की योनि में गये हें।
लड़का सारी बात समझ गया और उसने बैल और कुतिया को भरपेट भोजन कराया। और उसने पंडितो से उनकी योनि छूूटने का उपाय भी पूछा।
पंडितों ने सलाह दी कि भाद्रपद मास. की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को जब कुंवारी लड॒कियां चंद्रमा कोअर्ध्य देने लगें, तब ये दोनों उस अर्ध्य के नीचे खड़े हो जायें तो इनको इस योनि से छुटकारा मिल सकता हेै। तुम्हारी माँ ऋतुकाल में सारे बर्तनों को हाथ लगाती थी, इसी कारण इसे यह योनि मिली थी।”!” आने वाली चन्द्र षष्ठी पर लड़के ने उपरोक्त बातों का पालन किया, जिससे उसके माता-पिता को कुतिया और बैल की योनि से छुटकारा मिल गया। ु केसरिया कही जात भाद्रपद का महीना लगते ही आउठें को केसरिया की जात लगती है। हाथ में दाल का दाना लेकर कोई भी किसी भी पेड पर चढ़ा दें और एक नारियल लें। तब केसरिया के नाम का दुध, रोली, चावल, फूल, प्रसाद, दक्षिणा और नारियल सहित चढ़ा दें।
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