षटतिला एकादशी की कथा
प्राचीन काल में वाराणसी में एक गरीब अहीर रहता था। दीनता से काहिल वह बेचारा कभी-कभी भूखा ही बच्चों सहित आकाश में तारे गिनता रहता। उसकी जिंदगी बसर करने का सहारा केवल जंगल की लकड़ी थी, वह भी जब न बिकती तो फाके मारकर रह जाता। एक दिन वह अहीर किसी साहूकार के घर लकड़ी पहुंचाने गया। वहां जाकर देखता है कि किसी उत्सव की तैयारी हो रही है। जानने की इच्छा होने से वह साहूकार से पूछ बैठा-बाबूजी यह किस चीज की तैयारी हो रही है?
तब सेठजी बोले-यह षटतिला एकादशी ब्रत की तैयारी की जा रही है। इससे घोर पाप, रोग, हत्या आदि भवबंधनों से छुटकारा तथा धन, पूत्र की प्राप्ति होती है। यह सुनकर अहीर घर जाकर उस दिन के पैसे का सामान खरीद कर लाया और एकादशी का विधिवत ब्रत रखा। परिणामस्वरूप वह कंगाल से सम्मानित किया जाने लगा।