Home Kabir ke Shabd अनुचित उचित रहीम लघु kabir ke bhajan 6

अनुचित उचित रहीम लघु kabir ke bhajan 6

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अनुचित उचित रहीम लघु

अनुचित उचित रहीम लघु, करहिं बड़ेन के जोर।

ज्यों ससि के संजोग तें, पंचवत आंगि चकोर।। 6॥

अर्थ–कवि रहीम कहते हैं कि छोटे व्यक्ति भी अनुचित कार्य को बढ़े लोगों के संपर्क से उचित रूप में कर देते हैं। जैसे–चंद्रमा के  संसर्ग से चकोर पक्षी आग को भी पचा जाता है।

भाव—यहां कवि ने सत्संगति पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि अच्छी संगति से बुरे व्यक्ति भी श्रेष्ठ हो जाते हैं, जो कर्म वे बुरे रहकर नहीं कर पाते, उन्हें अच्छे लोगों के संसर्ग में आने पर, वे उचित ढंग से करने लगते हैं। जैसे चंद्रमा की ओर सदैव टकटकी लगाकर देखने वाला चकोर पक्षी आग को भी चंद्रमों की चांदनी समझकर पी जाता है। उस पर अग्नि का प्रभाव नहीं होता। जैसे चंदन वृक्ष के निकट रहने वाले वृक्षों में भी चंदन की सुगंध बस कक और चंदन के वृक्ष से लिपटे भुजंग (सर्प) अपने विष को त्याग ते हैं। इस प्रकार अच्छी संगति का प्रभाव भी सदैव अच्छा ही पड़ता है और बुरी संगति का प्रभाव बुरा पड़ता है।
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