कबीर भजन राम बिलावल -१२०
योगी या विभि मन को लगावें। टेक
जैसे नटनी चढ़े बांस पर,
नटवा ढोल बजावें ॥
सारा बोझ बांस सिर ऊपर,
सुरत बासे बाँधे
जैसे सखी जाय पनघट पर,
सिर धरि गागरि लावै
सखियां संग सूरति गगारि में,
योगी या विभि मन को लगावें। टेक
जैसे नटनी चढ़े बांस पर,
नटवा ढोल बजावें ॥
सारा बोझ बांस सिर ऊपर,
सुरत बासे बाँधे
जैसे सखी जाय पनघट पर,
सिर धरि गागरि लावै
सखियां संग सूरति गगारि में,
अम्बर चिर नहि जाये ।
जैसे लोहार कूटत लोहे को,
अइसण फूंक लगावे।
ऐसो चोर लगे घट अन्दर,
माया रह न पाये।
जाग सुगति से आसन मारे,
उलटी पवन चलाये।
कष्ट आपदा सबही संहारे,
नजर से नजर मिलाये।
जैसे मकरी तार अपनी,
उलटि-पुलटि चढ़ जाये ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
वाहि में उलटि समझा।