सदाचार
एक बार की बात है कि एक श्रमिक वैश्य ने अपने अंतिम समय में अपने दुष्ट बेटे से कहा–जब तुम्हारा धन समाप्त हो जाये तो दिवाल शाह से माँग लेना। जब उसका धन समाप्त हो गया तो उसने दिवालशाह की खोज की परन्तु उसका कहीं पता नहीं चला। वह बहुत दुःखी होकर रोने लगा।
अचानक कहीं से वहाँ एक महात्मा आ निकले। महात्मा ने उससे रोने का कारण पूछा। उसने सब बात बता दी। महात्माजी ने उपदेश देकर कहा बेटा सदाचार से रहो तो हम तुम्हें उस दीवाल शाह से धन दिला सकते हैं। उस कुकर्मा ने महात्माजी के आगे प्रतिज्ञा की।
महात्माजी ने उसे दिवाल बता दी।जब साहूकार ने दीवार को तोड़ा तो उसमें से काफी धन मिला। अब लड़के द्वारा सदाचार से रहने के कारण धन स्थिर हो गया और वह सत्कर्मों में लग गया। सदाचार ही एक ऐसी वस्तु है जिसमें दुःख होते हुए भी सुख ही सुख है।