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कबीर भजन १५६

कबीर भजन १५६
मेला सभी झिलमिल का टेक,
अरे कोई सफा न देखा दिल का।
बिल्ली देखी बगुला देखा,
सर्प जो देखा बिल का।
ऊपर ऊपर सुन्दर लागे,
भीतर गोखा पाथर का।
काजी देखा मुल्ला देखा,
पंडित देखा छल का ।
औरन को बैकुण्ठ बतावे,
आप नरक में सरका। 
पढ़े लिखे नहीं गुरु के मन्त्र को,
तरा गुमान कुमति का,
बैठे नाहिं साधु की संगत में,
करे गुमान वरन का।
मोह की फांसी परी गलेमा,
भाव करे नारी का। 
काम क्रोध दिन रात सतावे,
लानति ऐसे तन का। 
सतनाम का पकड़ ले बन्दे,
छोड़ कपट सब दिल का।
कहै कबीर सुनो सुल्ताना,
पहिर फ़क़ीर खिल का। 
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