आपद्धर्म किसे कहते है

उवस्ति ने कहा भाई मैं यदि यह उडद न खाता तो मेरे प्राण निकल जागते । प्राणो की रक्षा के लिये आपद्धर्म की वयवसथानुसार ही मैं उडद खा रहा हूँ पर जल तो अन्यत्र भी मिल जायेगा। यदि उड़द की तरह ही मैं तुम्हारा जूठा जल भी पी लूंगा तब तो वह स्वेछाचार हो जायगा । इसलिये भैया मैं तुम्हारा जल नहीं पिऊंगा ‘ यों कहकर उवस्ति ने कुछ उडद स्वयं खा लिये और शेष अपनी पत्नी को दे दिये’ ब्रह्माणी को पहले ही कुछ खानेको मिल गया था इसलिये उन उडदों को उसने खाया नहीं; अपने पास रख लिया है दूसरे दिन प्रात काल उषस्ति ने नित्यकृत्ये के बाद अपनी स्त्री से कहा–” क्या करू मुझे ज़रा सा भी अन्न कही से खानेकी मिल जाय तो मैं अपना निर्वाह होने लायक कुछ धन प्राप्त कर लू, क्योंकि यहाँ से समीप ही एक राजा यज्ञ कर रहा है, वह ऋत्विक के कार्यमैंमेरा भी वरण कर लेगा’ इस पर उनकी की स्त्री अटिकीने कहा-मेरे पास कल के बचे हुए उडद हैं; लीजिये, उन्हें खाकर जाप यज्ञ मे चले जाइये । ‘भूख से सर्वथा अशक्त उषस्ति ने उन्हें खा लिया और वे राजाके यज्ञमे चले गये वहाँ जा कर वे उद्वाताओं के पास बैठ गए और उनकी भूल देखकर बोले-‘प्रस्तोतागण आप जानते है-‘ जिन
देवता की आप स्तुति कर रहे हैं वे कौन हैं याद रखिये आप यदि अघिष्ठा को जाने बिना स्तुति करोगे तो आपका मस्तक गिर पडेगा । ‘ और इसी प्रकार उन्होंने उद्वाताओ एव प्रतिहर्ताओ से भी कहा। यह सुनते ही सभी ऋत्विज अपने-अपने कर्म छोडकर बैठ गये राजा ने अपने ऋत्विजो की यह दशा देखकर उषस्ति से पूछा-भगवन आप कोण हैं मैं आपका परिचय जानना चाहता हुँ उषस्तिने कहा -राजन | में चक्र का पुत्र उषस्ति हूँ’ राजा ने कहा, ‘ भगवन, उषस्ति आप ही हैं मैंने आपके बहुत से गुण सुने है 1 इसीलिये मैंने ऋत्विज के काम के लिए आपकी बहुत खोज करवायी थी पर-आप न मिले और मुझे दूसरे ऋत्विज का वरण करना पडा । यह मेरा बडा सौभाग्य है, जो आप किसी प्रकार स्वयं पधार गये है अब ऋत्विज सम्बन्धी समस्त कर्म आप ही करने की कृपा करें
देवता की आप स्तुति कर रहे हैं वे कौन हैं याद रखिये आप यदि अघिष्ठा को जाने बिना स्तुति करोगे तो आपका मस्तक गिर पडेगा । ‘ और इसी प्रकार उन्होंने उद्वाताओ एव प्रतिहर्ताओ से भी कहा। यह सुनते ही सभी ऋत्विज अपने-अपने कर्म छोडकर बैठ गये राजा ने अपने ऋत्विजो की यह दशा देखकर उषस्ति से पूछा-भगवन आप कोण हैं मैं आपका परिचय जानना चाहता हुँ उषस्तिने कहा -राजन | में चक्र का पुत्र उषस्ति हूँ’ राजा ने कहा, ‘ भगवन, उषस्ति आप ही हैं मैंने आपके बहुत से गुण सुने है 1 इसीलिये मैंने ऋत्विज के काम के लिए आपकी बहुत खोज करवायी थी पर-आप न मिले और मुझे दूसरे ऋत्विज का वरण करना पडा । यह मेरा बडा सौभाग्य है, जो आप किसी प्रकार स्वयं पधार गये है अब ऋत्विज सम्बन्धी समस्त कर्म आप ही करने की कृपा करें
उषस्तिने कहा— -… ‘ वहुत अच्छा । परंतु इन ऋत्विज को हटाना नहीं है मेरे (आज्ञानुसार ये (अपना-अपना “
कार्य करें और दक्षिणा भी जो इन्हें दी जाय, उतनी ही मुझे देना ( न तो मैं इन लोगो को निकलना चाहता हँ और न दक्षिणामे अघिक धन लेकर इनका अपमान ही करना चाहता हु | मेरी देख रेख में ये सब काम करते रहेंगे तदन्ता सभी ऋत्विज उपस्तित के पास जा कर तत्वों को जान कर यघकार्य में लग गए और विधिपूर्वक वह यघ समपन हुआ |
कार्य करें और दक्षिणा भी जो इन्हें दी जाय, उतनी ही मुझे देना ( न तो मैं इन लोगो को निकलना चाहता हँ और न दक्षिणामे अघिक धन लेकर इनका अपमान ही करना चाहता हु | मेरी देख रेख में ये सब काम करते रहेंगे तदन्ता सभी ऋत्विज उपस्तित के पास जा कर तत्वों को जान कर यघकार्य में लग गए और विधिपूर्वक वह यघ समपन हुआ |